शशि काण्डपाल द्वारा प्रकाशित
28 जून, 2020
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दो दिन बादामी में बिताने के बाद हमने “मुरुडेश्वर” जाने का निर्णय लिया।
दिन का इस्तेमाल घूमने में और रात को यात्रा करने का मन बनाया। 16 दिसंबर की रात को चल 17/12/19 की सुबह हम भटकल बस अड्डे पर उतर गए।
बादामी से वॉल्वो बसें आराम से मिलती हैं जिन्हें ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। बादामी से मुरुदेश्वर करीब 310 किलोमीटर है और छह घंटे में पहुंचा जा सकता है। वॉल्वो 9 PM के बाद वाली देखें वरना आप बस अड्डे पर सुबह चार बजे ही पहुँच जाएंगे।
हालांकि होटल तक जाने के लिए सवारियाँ आराम से मिल जाती हैं।
बस अड्डे से होटल्स की दूरी एक से डेढ़ किलोमीटर की ही है। हम पहली बार जा रहे थे सो भटकल होटल वाले से रिकवेस्ट कर एक ऑटो भी तय करवा लिया था ताकि अगर रात में पहुंचे तो होटल ढूँढने में परेशानी न हो।
हमें सारा दिन मुरुदेश्वर में नहीं रहना था, मंदिर दर्शन ही उद्देश्य था और वहाँ चलने वाले सारे वॉटर गेम्स आदि हम अंडमान में पूरे कर चुके थे सो कुछ घंटे का प्रवास था और दोपहर तक उडुपी निकल जाना था।
दिसंबर का महीना होने के बावजूद पूरे कर्नाटक में धूप चिलचिला रही थी। मुरुदेश्वर में बहुत सारे लोग दिन भर घूम कर, बेहद हसीन सूर्यास्त देखकर उडुपी लौट जाते हैं। कुछ पर्यटक यही होटल लेकर रात्रि विश्राम भी करते हैं लेकिन हमें दो, तीन घंटे के लिए ही कमरा चाहिए था ताकि सामान रख सकें, नहा धो सकें और थोड़ा आराम भी कर लें सो बादामी के होटल मैनेजर से कह कर मुरुदेश्वर में आधे दिन के किराए पर एक होटल में कमरा बुक करा लिया था।
हमें बताया गया कि आप जितनी देर भी रहें आधा किराया देना होगा और हम राजी हो गए। नहा धोकर दर्शन को निकले तो पता चला कि शिव जी के पुराने मंदिर में तो दर्शन हो जाएंगे लेकिन राजा गोपुरम प्रातः 8 बजे के बाद ही खुलता है। हमने तब तक नाश्ता करने की सोची।
बेहद सस्ते में गरम भाप से निकलती ताजी इडली और सांभर, चटनी और फिल्टर्ड कॉफी ने हमें दिन भर के लिए स्फूर्ति दे दी।
मुरुदेश्वर भगवान शिव का एक नाम है। पहले इसे मृदेशलिंगा कहते थे जो बाद में मुरुदेश्वर हो गया।
कहते हैं कि रावण ने कठोर तप करके कैलाश नाथ को प्रसन्न कर दिया जिसके फल स्वरूप अमरत्व का वरदान मांगा। शिव ने आत्मलिंगम देते हुए शर्त रखी कि कैलाश से लेकर लंका तक यदि रावण लिंग को बिना भूमि पर धरे ले जाने में सफल हुआ तो तो वो अमरत्व प्राप्त करेगा।
रावण मद में झूमता आत्मलिंगम लिए जा रहा था तो देवताओं को चिंता हुई कि कहीं ये अमर हो गया तो बड़ा विनाश करेगा सो बाल गणेश से कुछ करो की गुहार लगाई गई।
जब गोकर्णा पहुँच कर रावण अपनी संध्या पूजा निपटा रहा तो गणेश जी ने बाल सुलभ क्रिया में लिंग नीचे रख दिया। रावण बहुत क्रोधित हुआ। लिंग धरती में धंस चुका था। रावण जितना क्रोधित होता उतने वेग से आत्मलिंगम पर प्रहार करता आखिर लिंग टुकड़े टुकड़े हो गया।
उसका प्रमुख भाग गोकर्णा महाबलेश्वर में रह गया लेकिन टुकड़े सज्जेश्वर, धारेश्वर,गुणबनेश्वर में जा गिरे और कपड़े से ढका भाग मुरुदेश्वर आ कर गिरा।
भगवान मुरुदेश्वर का पुराना भव्य मंदिर है जिसमें पूजा होती है लेकिन बाद में एक व्यवसायी “आर एन शेट्टी” ने प्रसिद्ध मूर्तिकार “शिवामोग्गा” से एक भव्य, विशाल शिव मूर्ति बनवाने की इच्छा की। मूर्ति का स्थान “कनकूडा पहाड़” पर सोचा गया जहां से सूर्य की सबसे पहली किरण मूर्ति पर पड़े और वो और ज्यादा सुनहरी होकर जगमगा उठे।
प्रतिमा विश्व की दूसरी बड़ी शिव प्रतिमा है, पहली नेपाल में “कैलाशनाथ महादेव” की है। प्रतिमा 123 फीट ऊंची है और करीब दो सालों में बन कर तैयार हुई।
प्रतिमा के नीचे रामायण के दृश्यों को मूर्ति रूप तथा प्रदर्शनी के तौर पर भी दर्शाया गया है। सारी मूर्तियाँ सुनहरी हैं।
इसी के साथ इक्कीस मंजिल का “राजा गोपुरम” भी बनाया गया है जिसमें लिफ्ट्स लगी हैं और दर्शक ऊपर जाकर चारों तरह का विहंगम नजारा देख सकते हैं।
फोटो खींच सकते हैं। गोपुरम का प्रवेश द्वार बेहद विशाल है जिसके दोनों तरफ विशालकाय हाथी खड़े हैं। सुंदर नीलवर्ण के हाथी सुनहरी आभा के साथ जीवंत लगते हैं। अंदर भी कई हाथियों की मूर्तियाँ हैं ।
ये पर्वत तीन तरफ से अरेबियन समुन्द्र से घिरा हुआ है सो मंदिर परिसर के अलावा समुन्द्र का दृश्य भी बहुत खूबसूरत है। राजा गोपुरम के अठारहवें माले तक जाने की इजाजत दर्शकों को है सो अपनी बायनाकुलर ले जाना न भूलें। मंदिर दर्शनों के पश्चात आप स्कूबा डाइविंग समेत कई अन्य समुंदरी खेलों का लुत्फ उठा सकते हैं।
मुरुदेश्वर के दृश्य कभी आपके मानस से ओझल नहीं होंगे ये मेरा दावा है बस जब भी जाएँ प्रातःकाल जाएँ और समय हो तो सूर्यास्त अवश्य देखें।
खर्च
बादामी से मुरुदेश्वर वॉल्वो किराया – रु 600
होटल – रु 900
ऑटो – रु 100
ब्रेकफ़ास्ट – रु 25/ प्लेट
कॉफी – रु 20
जूता टोकरी – रु 10
राजा गोपुरम लिफ्ट – रु 10
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