शशि काण्डपाल द्वारा प्रकाशित
25 जुलाई, 2020
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हम उडुपी में एक दिन /रात और दूसरी सुबह करीब 9 बजे तक रहे और फिर टैक्सी करके मेंगलुरु आ गए।
इन दोनों शहरों के बीच की दूरी बामुश्किल 55 किलोमीटर है।
होटल में कमरा एक शहर से दूसरे शहर के होटल वालों की सहायता से मिल जा रहा था और गोजो टैक्सी सेवा भी अच्छी थी।
मेंगलुरु कर्नाटक का एक बहुत खूबसूरत शहर है। ये शहर अरेबियन सागर और वेस्टर्न घाट के बीच बसा है। ये प्राचीन समय से ही भारत का विशाल बन्दरगाह बना रहा जहां से व्यापार होता था। अभी भी भारत का 75% से भी ज्यादा कॉफी, काजू का निर्यात यहीं से होता है।
इस क्षेत्र पर कई राजाओं ने राज्य किया। कदंब और वीर हरिहरराया, अलुपा वंशज, विजयनगर साम्राज्य, कलेडी नायक, पुर्तगाली, मैसूर साम्राज्य और ब्रिटिश। ये शहर ब्रिटिश तथा मैसूर के राजा हैदर अली और टीपू के बीच विवाद का विषय भी रहा। ये मौर्य साम्राज्य का हिस्सा भी बना जिसका राजा मगध का अशोक था।
इसका आधुनिक प्रादुर्भाव 1498 से शुरू हुआ जब पुर्तगाली खोजी वास्को डी गामा सेंट मैरी आईलेंड पर उतरा। उसे यहाँ के व्यापार में बहुत दिलचस्पी थी।
उन लोगों ने पहले अपने मधुर रिश्तों का फायदा उठाया और फिर धीरे धीरे पूरे व्यापार अपने हाथ में ले लिए।
200 साल बाद फिर से मैसूर के राजा हैदर अली ने मंगलोर को वापस प्राप्त किया लेकिन टीपू की ब्रिटिश सेना के साथ मुठभेड़ में मारे जाने पर ये क्षेत्र ब्रिटिश के हाथों में जाता रहा।
इस शहर का नाम यहाँ की प्रसिद्ध देवी मंगला के नाम से प्रचलित हुआ। कन्नड में इसे मेंगलुरु कहते हैं लेकिन ब्रिटिश इसे मंगलौर के नाम से संबोधित करते रहे।
मजे की बात कि इस शहर के कम से कम 8 नाम हैं। इसे
1-कोडियाल/ कोंकणी में ,
2-कुडला/टुलु,
3-मंगलापुरम/मलयालम,
4-मंजारून/संस्कृत,
5-कोडेयाला/हव्यक्का,
6-माइकाला/बियरी भाषाओं में पुकारते हैं
आख़िर 1 नवंबर 2014 को कर्नाटक सरकार ने इसे 7-मंगलोर से 8-मेंगलुरु नाम घोषित किया। यहाँ के कई क्षेत्रों के नोटिस बोर्ड पर ये नाम पढ़कर भ्रमित भी हो सकते हैं।
मंगलुरु में टुलु , कोंकणी, कन्नड़ा और बेयरी बोलियाँ बोली जाती हैं, इसका एहसास हमें विभिन्न जिलों में घूमने से हुआ जब हमारा दुभाषिया ड्राइवर भी बोली समझने में थोड़ा समय लगाता था। उसी ने प्रचलित भाषाओं का परिचय दिया।
मेंगलुरु देवस्थलों का शहर है। यहाँ मंगला देवी मंदिर, श्री मंजूनाथ मंदिर, कुक्के सुब्रह्मण्यम, दुर्गा परमेश्वरी मंदिर, गोकर्णेश्वरा टैम्पल, सेंट अलोयसियस चेपल और पेलिकुला बायोलोजिकल पार्क जैसे दर्शनीय स्थल हैं तो तन्नीर बावी, सोमेश्वरा, पनाम्बूर जैसे समुन्द्र तट हैं जिनमें दिन भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
मेंगलोर या कर्नाटक में खाना करीब करीब एक सा है मसलन फिल्टर कॉफी, रागी के व्यंजन, बाथ, डोसा आदि लेकिन मेंगलुरु में नीर डोसा खूब मिला।
मुझे रागी मोद्दे खाने थे वो कहीं नहीं मिला लेकिन एक गज़ब की चीज मिली।
हुआ यूं कि जब शाम को पनांबुरा बीच पर पहुंचे तो भूख लग आई थी। हम हमेशा सुबह ही करीब 9 बजे डट के नाश्ता कर लेते हैं फिर दिन भर फल या हल्की फुलकी ताजी चीजें खाते हैं लेकिन आज भूख ज़्यादा थी। बीच से पहले तमाम खाने के स्टाल हैं सो हमने एक स्टाल वाले से कहा जो भी ताजा और गरम खिला सकते हो वो बताओ। वहाँ गोभी की पकौड़ी करीब हर स्टाल पर तली जा रही थी और सॉस, चटनी मिक्स करके लोग ले जा रहे थे वो हमें नहीं खाने थे।
स्टाल वाले ने बताया कि थोड़ा इंतजार कर लें तो गोली बाजे बन रही है। दस बार दोहरा कर नाम समझ आया फिर लगा भगवान जाने क्या अटपटी सी चीज हो सो थोड़ा सा लाने को बोला। वो आलू, दाल के चटपटे, एकदम गोल कोफ्ते टाइप के नारियल की चटनी के साथ बहुत स्वादिष्ट पकौड़े थे। गोली बाजे कभी नहीं भूलेगा। कर्नाटक यात्रा भर सुबह का नाश्ता बिना बनाना बन खाये पूरा नहीं होता था और रात का डिनर बिना बाथ खाये। यदि कर्नाटक का 10 दिन का टूर था तो करीब 30 प्लेट बाथ (हलवा) खाया होगा।
आइये अब शहर घूमते हैं, हमने अपने टैक्सी वाले को छोड़ा नहीं और शहर घूमने के लिए राजी कर लिया। होटल में चैक इन करके करीब 11 बजे तक हम मैंगलुरु घूमने निकल लिए।
मंगला देवी मंदिर
हमने गूगल से घूमने की जगहों के नाम निकाल रखे थे सो उसकी लिस्ट बनाई और टॅक्सी वाले को पकड़ा दीं।
आप मैंगलुरु जाएँ और मंगला देवी के दर्शन न करें ये असंभव है सो टैक्सी वाले ने सबसे पहले वही दिखाया। यहाँ शक्ति स्वरूपा, मंगलादेवी के नाम से प्रतिष्ठित हैं और इन्हीं के नाम पर ये शहर है। मंदिर नवीं शताब्दी में राजा कुंदावरमन ने बनवाया था जो कि प्रतिष्ठित अलूपा साम्राज्य से संबंध रखते हैं। ये भी कहा जाता है कि मंदिर श्री परसुराम जी ने बनवाया था कालांतर में पेड़ पौंधों से घिर कर दिखना बंद हो गया था सो इसका उद्धार, विस्तार और सौंदर्यीकरण कुंदावरमन ने करवाया।
माँ यहाँ बैठी मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर का वास्तु केरल की याद दिलाता है। मंदिर के ऊपर लकड़ी का बना एक और गोपुरम उत्सवों के दौरान वाद्यय यंत्र बजाने की जगह है।
द्वार पर द्वारपाल खड़े किए गए हैं। छतें टेराकोटा टाइल से छाई गईं हैं और अंदर से लकड़ी के बने खांचे पर टिकी हैं। ढलवा छत बहुत खूबसूरत लगती है।
दशहरा यहाँ का सबसे धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार है और पूरे 9 दिनों तक पूजा चलती है। नवरात्रि के सातवें दिन माँ चंडिका, आठवें दिन महा सरस्वती और नवें दिन वाग्देवी के रूप में पूजित हैं। आयुध पूजन भी होता है। दसवें दिन दशहरा को देवी की रथ यात्रा निकलती है और शामी पेड़ के साथ पूजा होती है।
देवी के मंदिर के आगे पीतल का चमकता खंभा बहुत आकर्षक लगता है। मंदिर खुलने के तीन स्लॉट हैं अतः स्थानीय लोगों से पूछकर उधर जाएँ।
कादरी मंजूनाथ
यह भी एक ऐतिहासिक मंदिर है। ये भी दसवी, ग्यारहवीं शताब्दी में बना है।
कहते हैं कि जब परसुराम अपनी जीती हुई सारी धरती दान कर चुके थे तो उन्होने शिव से अपने रहने की जगह मांगी। शिवजी ने उन्हें कहा कि आप अपना हथियार जहां फेंक देंगे वो क्षेत्र आपका होगा और उस क्षेत्र के कल्याण के लिए खुद भगवान शिव मंजूनाथ के रूप में वहाँ आएंगे ये वचन भी दिया।
मंदिर परिसर में कई सुंदर तालाब हैं। कार्तिक मास में यहाँ दीपोत्सव मनाया जाता है। ये मंदिर कादरी पर्वत पर है। कहते हैं कि यहाँ बौद्ध और शैव दोनों आराधना करते थे इसीलिए कादरी बौद्ध को दर्शाता है जबकि मंजूनाथ शिव को लेकिन जब बौद्ध धर्म खत्म सा होने लगा तो ये पूरी तरह शिव मंदिर बन गया।
यहाँ मच्छेंद्रनाथ, गोरखनाथ, शृंगीनाथ, लोकेश्वरा, मंजुश्री और बौद्ध मंदिर भी हैं। लोकेश्वरा मूर्ति अपने में अलग है, ये पीतल कि 5 फिट ऊंची ब्रह्मा जी मूर्ति है जिसके तीन चेहरे और छः हाथ हैं जिसमें दो हाथों में फूल हैं। ये इस मंदिर की सबसे पुरानी मूर्ति बताई जाती है।
गोकर्ण नाथ मंदिर
ये मंदिर अपने में अलग एकदम सुनहरा है। विशाल और भव्य।
ये भी शिव के एक रूप गोकर्ण को समर्पित है। इसे 1912 में स्वामी नारायण ने बनवाया/अभिषेक किया था। इसकी साज संभाल में यहाँ के ट्रस्टी मिनिस्टर जनार्दन पुजारी का बहुत बड़ा हाथ है। मंदिर मुग्ध करने वाला है।
पिलिकुला बायोलोजिकल पार्क
पिली माने शेर और कुला माने तालाब !
जहां बहुत से तालाब हों और उनमें पानी पीने शेर आते हों उसी को एक खूबसूरत बोटिनीकल गार्डेन, ज़ू में बदल दिया गया। मैंगलुरु शहर की ये सबसे खास जगह है। यहाँ आप परिवार समेत सारा दिन बिता सकते हैं और बच्चों को बहुत कुछ सिखा भी सकते हैं।
यहाँ इंटरेंस टिकट है, साथ में आप बेटरी वाली शटल, प्लेनेटोरियम आदि का शुल्क देकर इन सब का भी लाभ उठा सकते हैं। शटल दिन भर घूमती रहती हैं, आप एक स्पॉट देखिये और दूसरे स्पॉट के लिए आपको शटल बाहर खड़ी मिल जाएगी। एरिया इतना बड़ा है कि पैदल घूमा भी नहीं जा सकता।
पिलिकुला पार्क 1996 में बना और इसकी परिकल्पना में पर्यटकों को उन सारी दर्शनीय चीजों को एक जगह उपलब्ध कराना था जिससे मनोरंजन, पिकनिक, प्रकृति सब साथ में मिले। इसमें प्रमुख है बोटिनीकल गार्डेन जिसमें तालाब, आर्बोटेरियम, बोगनवेलिया का बगीचा, सूर्यमुखी गार्डेन और मेडिसिनल प्लांट देखे जा सकते हैं।
ज़ू और मानस वॉटर पार्क एक साथ हैं। ज़ू में आपको थीम पार्क की तर्ज पर सेक्शन मिलेंगे। हिरण के प्रकार, शेर, चीता, भालू तथा और भी जंगली जानवर देखने को मिलेंगे। आप शेर को सिर्फ 2 फिट की दूरी से देख सकते हैं। यहाँ साँप की गैलरी भी है और बर्ड पार्क भी।
यहाँ अन्य आकर्षण साइन्स सेंटर, थ्री डी प्लेनेटोरियम, गॉल्फ कोर्स, तमाम हुनर तथा व्यवसाय को दर्शाता हेरिटेज विलेज तथा परंपरागत गुठू हाउस भी है।
पनाम्बूर बीच
मैंगलुरु का पनाम्बूर बीच अरेबीयन सी का तट है जो कि सरकार द्वारा काफी रखरखाव से साफ है। शहर से यहाँ आने में कोई समस्या नहीं है। ये प्रसिद्ध और सबसे ज़्यादा लोगों द्वारा भ्रमण किया जाने वाला बीच है।
ये शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन बस आराम से मिलती है। यहाँ जेट स्काई राइड्स, बोटिंग, डोलफ़िन देखना, फूड स्टाल आदि एंजॉय किए जा सकते हैं। यहीं से सामने सेंट मेरी आइलेंड दिखता है वहाँ भी जाया जा सकता है। यहाँ का सूर्यास्त बहुत खूबसूरत होता है जिसे देखने न सिर्फ पर्यटक बल्कि स्थानीय लोग भी शाम को बीच पर आ जाते हैं।
इसी तट के बगल में न्यू मंगलोर सी पोर्ट भी है। यहाँ पहली बार तट पर बड़े बड़े पत्थरो कि चट्टानें देखीं जो कि इस तट को और बीचेज़ से अलग बनती हैं।
यहाँ करावाली उत्सव के दौरान पतंगबाजी का इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल होता है जिसमें इंग्लैंड, नीदरलैंड, जर्मनी, कुवैत, थायलैंड, औस्ट्रेलिया तथा अन्य कई देशों के लोग प्रतिभागी भाग लेने आते हैं। ये जानकार रोमांच हो जाता है कि जिसे हमने इतिहास में पढ़ा वो वास्को डी गामा इस बीच पर आया था जिसने समुंदरी व्यापार पर कब्जा करने की कोशिश की थी।
मैंगलुरु में घूमने की बहुत सी जगह हैं लेकिन हम एक दिन ठहरे थे सो मुख्य चीजें ही देखी।
खर्च-
साइट टैक्सी रु 1000/दिन
होटल 1800/ प्रतिदिन ( हर तरीके के होटल उपलब्ध हैं)
ब्रेकफ़ास्ट/ लंच वैरायटी उपलब्ध है।
खर्च- (पिलिकुला पार्क)
हेरिटेज विलेज फ्री
प्लेनेटोरियम- रु 80
कॉम्बो टिकिट- रु 150( सब जगह घूम सकते हैं )
कैमरा- रु 150
बेटरी शटल- रु 25
(सोमवार बंद)
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1 Comment
shashi · September 19, 2020 at 3:08 pm
कर्नाटक यात्रा में हर शहर अपने में अलग खूबियां लिए म्यल लेकिन मंगलुरु संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता में हर शहर से बढ़कर मिला।